Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
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शब्दार्थ - वो सिगवीसा - बीस और इक्कीस का, चउवीसगाइ - चौबीस से लेकर एगाहिया -- एक-एक अधिक, य-और, इगतीसा - इकतीस तक, उदयट्ठाणाणि उदयस्थान, भवे होते -नौ और आठ प्रकृति का, हुंति - होते हैं, नामस्स
हैं, नव अट्ठय नामकर्म के ।
गाथार्थ ---- नामकर्म के बीस, इक्कीस और चौबीस से लेकर एक, एक प्रकृति अधिक इकतीस तक तथा आठ और नौ प्रकृतिक, ये बारह उदयस्थान होते हैं ।
विशेषार्थ – नामकर्म के बंधस्थान बतलाने के बाद इस गाथा में उदयस्थान बतलाये हैं । वे उदयस्थान बारह हैं । जिनकी प्रकृतियों की संख्या इस प्रकार है - २०, २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ८ और । इन उदयस्थानों का स्पष्टीकरण तिर्यंच, मनुष्य, देव और नरकगति के आधार से नीचे किया जा रहा है ।
नामकर्म के जो बारह उदयस्थान कहे हैं, उनमें से एकेन्द्रिय जीव के २१, २४, २५, २६ और २७ प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान होते हैं । यहाँ तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, वर्णचतुष्क और निर्माण ये बारह प्रकृतियाँ उदय की अपेक्षा ध्रुव हैं। क्योंकि तेरहवें सयोगिकेवली गुणस्थान तक इनका उदय नियम से सबको होता है। इन ध्रुवोदया वारह प्रकृतियों में तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, स्थावर, एकेन्द्रिय जाति, वादर-सूक्ष्म में से कोई एक, पर्याप्त - अपर्याप्त में से कोई एक, दुभंग, अनादेय तथा यश: कीर्तिअयशः कीर्ति में से कोई एक, इन नौ प्रकृतियों के मिला देने पर इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह उदयस्थान भव के अपान्तराल में विद्यमान एकेन्द्रिय के होता है ।
इस उदयस्थान में पांच भंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं-- बादर पर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म पर्याप्त, सूक्ष्म अपर्याप्त इन चारों
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