Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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क्षपकश्रेणि में १३, १२ और ११ प्रकृतिक सत्तास्थान तो होते ही हैं और उनके साथ २१ प्रकृतिक सत्तास्थान को और मिला देने पर क्षपकश्रेणि में २१, १३, १२ और ११, ये चार सत्तास्थान होते हैं । आठ कषायों के क्षय न होने तक २१ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है और आठ कषायों के क्षय हो जाने पर १३ प्रकृतिक सत्तास्थान । इसमें से नपु सक वेद का क्षय हो जाने पर १२ प्रकृतिक तथा बारह प्रकृतिक सत्तास्थान में से स्त्रीवेद का क्षय हो जाने पर ११ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है।
इस प्रकार पाँच प्रकृतिक बन्धस्थान में २८, २४, २१, १३, १२ और ११ प्रकृतिक, ये छह सत्तास्थान होते हैं। अब चार प्रकृतिक बन्धस्थान के छह सत्तास्थानों को स्पष्ट करते हैं। __ चार प्रकृतिक बन्धस्थान में २८, २४, २१, ११, ५ और ४ प्रकृतिक, ये छह सत्तास्थान होते हैं।' चार प्रकृतिक बन्धस्थान भी उपशमश्रेणि और क्षपकणि दोनों में होता है। उपशमश्रेणि में पाये जाने वाले २८, २४ और २१ प्रकृतिक सत्तास्थानों का पहले जो स्पष्टीकरण किया गया, वैसा यहाँ भी समझ लेना चाहिए । अब रहा क्षपकश्रेणि का विचार, सो उसके लिये यह नियम है कि जो जीव नपुंसकवेद के उदय के साथ क्षपकोणि पर चढ़ता है, वह नपुंसकवेद और स्त्रीवेद का क्षय एक साथ करता है और इसके साथ ही पुरुषवेद का बन्धविच्छेद हो जाता है। तदनन्तर इसके पुरुषवेद और हास्यादि षट्क का एक साथ क्षय होता है । यदि कोई जीव स्त्रीवेद के उदय
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१ चतुविधबन्धे पुनरमुनि षट् सत्तास्थानानि, तद्यथा-अष्टाविंशतिः, चतुर्विंशतिः एकविंशतिः, एकादश, पंच, चतस्रः ।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, प्र० १७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org