Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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पच्चीस प्रकृतिक बंधस्थान में कुल पच्चीस भंग होते हैं। क्योंकि एकेन्द्रिय के योग्य पच्चीस प्रकृतियों का बंध करने वाले जीव के बीस भंग होते हैं तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यगति के योग्य पच्चीस प्रकृतियों का बंध करने वाले जीवों के एक-एक भंग होते हैं। अत: पूर्वोक्त बीस भंगों में इन पाँच भंगों को मिलाने पर पच्चीस प्रकृतिक बंधस्थान में कुल पच्चीस भंग होते हैं। __छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थान के कुल सोलह भंग हैं। क्योंकि यह एकेन्द्रिय के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले जीव के ही होता है और एकेन्द्रियप्रायोग्य छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थान में पहले सोलह भंग बता आये हैं, अत: वे ही सोलह भंग इस छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थान में जानना चाहिये।
अट्ठाईस प्रकृतिक बंधस्थान में कुल नौ भंग होते हैं। क्योंकि देवगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले जीव के २८ प्रकृतिक बंधस्थान के आठ भंग होते हैं और नरकगति के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले जीव के अट्ठाईस प्रकृतिक वधस्थान का एक भंग। यह स्थान देव और नारक के सिवाय अन्य जीवों को किसी भी प्रकार से प्राप्त नहीं होता है । अत: इसके कुल नौ भंग होते हैं।
उनतीस प्रकृतिक बधस्थान के ६२४८ भंग होते हैं । इसका कारण यह है कि तिर्यंच पंचेन्द्रिय के योग्य उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थान के ४६०८ भंग होते हैं तथा मनुष्यगति के योग्य उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थान के ४६०८ भंग हैं और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय के योग्य एवं तीर्थंकर नाम सहित देवगति के योग्य उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थान के आठ-आठ भंग होते हैं । इस प्रकार उक्त सब भंगों को मिलाने पर उनतीस प्रकृतिक बन्धस्थान के कुल भंग ४६०८+४६०८+८++ ८+८=६२४८ होते हैं।
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