Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
तिर्यंचगति के योग्य बंध करने वाले जीवों के सामान्य से २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक पाँच बंधस्थान होते हैं। उनमें से भी एकेन्द्रिय के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले जीवों के २३, २५ और २६ प्रकृतिक, ये तीन बंधस्थान होते हैं ।२ __उनमें से २३ प्रकृतिक बंधस्थान में तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुंडसंस्थान, वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात नाम, स्थावर नाम, सूक्ष्म और बादर में से कोई एक, अपर्याप्त नाम, प्रत्येक और साधारण इनमें से कोई एक, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश:कीति और निर्माण, इन तेईस प्रकृतियों का बंध होता है। इन तेईस प्रकृतियों के समुदाय को तेईस प्रकृतिक बंधस्थान कहते हैं और यह बंधस्थान अपर्याप्त एकेन्द्रिय के योग्य प्रकृतियों का बंध करने वाले मिथ्यादृष्टि तिर्यंच और मनुष्य को होता है।
यहाँ चार भंग प्राप्त होते हैं। ऊपर बताया है कि वादर और सूक्ष्म में से किसी एक का तथा प्रत्येक और साधारण में से किसी एक का बंध होता है । अत: यदि किसी ने एक बार बादर के साथ प्रत्येक का और दूसरी बार बादर के साथ साधारण का बंध किया। इसी
१-~-(क) तत्र तिर्यग्गतिप्रायोग्यं बघ्नतः सामान्येन पंच बंधस्थानानि, तद्यथा त्रयोविंशति: पंचविंशतिः षड्विंशतिः एकोनत्रिंशत् त्रिंशत् ।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७६ (ख) तिरिक्खगदिणामाए पंचट्ठाणाणि तीसाए एगूणतीसाए छठवीसाए पणुवीसाए तेवीसाए ट्ठाणं चेदि ।
--जी० चू०, ठा०, सू० ६३ २ तत्राप्येकेन्द्रियप्रायोग्यं बध्नतस्त्रीणि बन्धस्थानानि, तद्यथा---त्रयोविंशतिः - पंचविंशतिः षड्विंशतिः ।
सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org