Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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प्रकृतिक बंध के संक्रमकाल के समय दो प्रकृतिक उदयस्थान में बारह भंग बतलाये थे, उनको सम्मिलित करके यह उदयस्थानों की संख्या और पदसंख्या बताई है। अर्थात् उदयस्थानों में से मतान्तर वाले बारह भंग कम कर दिये जायें तो ६८३ उदयविकल्प होते हैं और द्वि-प्रकृतिक उदयस्थान के बारह-बारह भंग कम कर दिये जायें तो पदों की कुल संख्या ६९४७ होती है। विशेष स्पष्टीकरण आगे की गाथा में किया जा रहा है। अब बारह भंगों को छोड़कर उदयस्थानों की संख्या और पदसंख्या का निर्देश करते हैं।
नवतेसीयसएहि उदयविगप्पेहि मोहिया जीवा । अउणत्तरिसीयाला पर्यावदसएहि विन्नेया ॥२०॥
शम्दार्थ-नवतेसीयसहि-नौ सौ तिरासी, उदयविगप्पेहिउदयविकल्पों से, मोहिया-मोहित हुए, जीवा-जीव, अउणत्तरिसोयाला-उनहत्तर सौ सैंतालीस, पर्यावदसएहि-पदों के समूह, विन्नेया---जानना चाहिये । ___ गाथार्थ-संसारी जीव नौसौ तिरासी उदयविकल्पों से और उनहत्तर सौ सैंतालीस पद समुदायों से मोहित हो रहे हैं, ऐसा जानना चाहिये।
विशेषार्थ-पूर्व गाथा में मतान्तर की अपेक्षा उदयविकल्पों और पदवृन्दों की संख्या बतलाई है । इस गाथा में वमत से उदयविकल्पों और पदवन्दों की संख्या का स्पष्टीकरण करते हैं।
पिछली गाथा में उदयविकल्प ६६५ और पदवृन्द ६९७१ बतलाये हैं और इस गाथा में उदयविकल्प ९८३ और पदवृन्द ६९४७ कहे हैं। इसका कारण यह है-चार प्रकृतिक बंध के संक्रम के समय दो प्रकृतिक उदयस्थान होता है, यदि इस मतान्तर को मुख्यता न दी
जाये और उनके मत से दो प्रकृतिक उदयस्थान के उदयविकल्प और Jain Education International For Private & Personal Use Only
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