Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
सप्ततिका प्रकरण
और २४ प्रकृतिक तो उपशम सम्यग्दृष्टि और वेदक सम्यग्दृष्टि जीवों के होते हैं, किन्तु यह विशेषता है कि २४ प्रकृतिक सत्तास्थान, जिसने अनन्तानुबंधी चतुष्क की विसंयोजना कर दी है, उसको होता है ।" २३ और २२ प्रकृतिक सत्तास्थान वेदक सम्यग्दृष्टि जीवों के ही होते हैं। क्योंकि आठ वर्ष या इससे अधिक आयु वाला जो वेदक सम्यग्दृष्टि जीव क्षपणा के लिये उद्यत होता है, उसके अनन्तानुबंधी चतुष्क और मिथ्यात्व का क्षय हो जाने पर २३ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है और फिर उसी के सम्यग्मिथ्यात्व का क्षय हो जाने पर २२ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । यह २२ प्रकृतिक सत्ता वाला जीव सम्यक्त्व प्रकृति का क्षय करते समय जब उसके अन्तिम भाग में रहता है और कदाचित् उसने पहले परभव सम्बन्धी आयु का बंध कर लिया हो तो मर कर चारों गतियों में उत्पन्न होता है। कहा भी है
१२६
"पट्ठवगो उ मणूसो निट्टबगो चडसु वि गई ।
अर्थात् दर्शनमोहनीय की क्षपणा का प्रारम्भ केवल मनुष्य ही करता है, किन्तु उसकी समाप्ति चारों गतियों में होती है ।
इस प्रकार २२ प्रकृतिक सत्तास्थान चारों गतियों में प्राप्त होता है किन्तु २१ प्रकृतिक सत्तास्थान क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव को ही प्राप्त होता है । क्योंकि अनन्तानुबंधी चतुष्क और दर्शनमोहत्रिक, इन सात प्रकृतियों का क्षय होने पर ही क्षायिक सम्यग्दर्शन होता है । इसी प्रकार आठ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते हुए भी सम्यग्मिथ्या
१ नवरमनन्तानुबन्धिविसंयोजनानन्तरं सा अवगन्तव्या ।
- सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७२
२
स च द्वाविंशतिसत्कर्मा सम्यक्त्वं क्षपयन् तच्चरमग्रासे वर्तमानः कश्चित् पूर्वबद्धायुष्कः कालमपि करोति, कालं च कृत्वा चतसृणां गतीनामन्यतमस्यां गतावुत्पद्यते । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृष्ठ १७२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org