Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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स-ततिका प्रकरण
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८,९,१० उपशमश्रेणि ६,१० क्षपक ९,१० मतान्तर से ११ उपशामक ११ उपशामक १२ द्विचरम समय पर्यन्त मतान्तर से १२ चरम समय में
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दर्शनावरण कर्म के संवेध भंगों का कथन करने के अनन्तर अब वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के संवेध भंग बतलाते हैं---
वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म
वेयणियाउयगोए विभज्ज मोहं परं वोच्छं ॥६॥
१. इन भंगों में आठवाँ और बारहवाँ भंग कर्मस्तव के अभिप्राय के अनुसार
बतलाया है और शेष ग्यारह भंग इस ग्रन्थ के अनुसार समझना चाहिए। २. किन्हीं विद्वान ने वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के भंगों को संख्या बतलाने
के लिये मूल प्रकरण के अनुसंधान में निम्नलिखित गाथा प्रक्षिप्त की है(क) गोयम्मि सत्त भंगा अट्ठ य भंगा हवंति वेयणिए ।
पण नव नव पण भंगा आउच उक्के वि कमसो उ ॥ यह गाथा मूल प्रकरण में नहीं है । (ख) वेयणिये अडभंगा गोदे सत्तेव होंति भंगा हु । पण णव णव पण भंगा आउच उक्केसु विसरित्था ।
-गो० कर्मकांड ६५१ वेदनीय के आठ और गोत्र के सात भंग होते हैं तथा चारों आयुओं के क्रम से पाँच, नौ, नौ और पाँच भंग होते हैं ।
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