Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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काल
पहला
सातवें गुणस्थान में एक जीव देशोन पूर्वकोटि प्रमाण रह सकता है। इसीलिये नौ प्रकृतिक बंधस्थान का उत्कृष्टकाल उक्त प्रमाण है। पाँच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक बंधस्थान नौवें अनिवृत्तिबादर संपराय गुणस्थान के पाँच भागों में होते हैं और इन सभी प्रत्येक बंधस्थान का जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । क्योंकि नौवें गुणस्थान के प्रत्येक भाग का जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । मोहनीय कर्म के दस बंधस्थानों का स्वामी व काल सहित विवरण इस प्रकार हैबंधस्थान | गुणस्थान
जघन्य
उत्कृष्ट २२ प्र०
अन्तर्मुहूर्त
देशोन अपा. २१ प्र० दूसरा
एक समय
छह आवली १७ प्र० ३,४ था
अन्तर्मुहूर्त साधिक ३३ सागर १३ प्र० ५ वाँ
देशोन पूर्वकोटि ६,७, ८ वाँ नौवें का पहला भाग | एक समय अन्तर्मुहूर्त
" , दूसरा भाग। | " , तीसरा भाग
| ,, ,, चौथा भाग , .१ ॥ I ,, ,, पाँचवाँ भाग
मोहनीय कर्म के दस बंधस्थानों को बतलाने के बाद अब उदयस्थानों का कथन करते हैं। - एक्कं व दो व चउरो एत्तो एक्काहिया दसुक्कोसा। , ओहेण मोहणिज्जे उदयट्ठाणा नव हवंति ॥११॥ १ तुलना कीजिये
दस णव अट्ठ य सत्त य छप्पण चत्तारि दोष्णि एक्कं च । उदयट्ठाणा मोहे णव चेव य होति णियमेण ॥
-गो० कर्मकांड, गा० ४७५
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