Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ हैं। परन्तु इतनी विशेषता है कि नरकायु के स्थान में सर्वत्र देवायु कहना चाहिये । जैसे देवायु का उदय, देवायु की सत्ता आदि ।' देवायु के पाँच भंगों का कथन इस प्रकार होगा--
१. देवायु का उदय और देवायु की सत्ता (अबन्धकाल)। २. तिर्यंचायु का बंध, देवायु का उदय और तिर्यंच-देवायु को सत्ता
(बंधकाल)। ३. मनुष्यायु का बंध, देवायु का उदय और मनुष्य-देवायु की सत्ता
(बंधकाल)। ४. देवायु का उदय और देव-तिर्यंचायु का सत्त्व (उपरत
बंधकाल)। ५. देवायु का उदय और देव-मनुष्यायु का सत्त्व (उपरत
बंधकाल) उक्त भंगों का विवरण इस प्रकार है
देव
मंगक्रम काल बंध उदय | सत्ता ।
गुणस्थान अबन्धकाल
देव देव १,२,३,४ बंधकाल तिर्यंच
ति०, देव १,२ बंधकाल । मनुष्य देव देव, म० । १,२.४ उप० बंधकाल
देव दे० ति० १,२,३,४ | उप० बंधकाल .
दे० म० । १,२,३,४ तिर्यंचायु के संवैध भंग-तिर्यंचगति में आयुकर्म के संवेध भंगविकल्प नौ होते हैं। जिनका कथन इस प्रकार है कि अबन्धकाल में तिर्यंचायु का उदय और तिर्यंचायु की सत्ता यह एक भंग होता है, जो
देव
१ एवं देवानामपि पंच विकल्पा भावनीयाः । नवरं नारकायुः स्थाने देवायुरिति वक्तव्यम् । तद्यथा---देवायुष उदयो, देवायुषः सत्ता इत्यादि ।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६०
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