Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ दूसरे गुणस्थान में हो जाता है। इन दोनों भंगों का सम्बन्ध नीचगोत्र के बंध से है, अत: इनका सद्भाव महले और दूसरे गुणस्थान में बताया है, आगे तीसरे सम्यगमिथ्या दृष्टि आदि गुणस्थानों में नहीं बताया है। चौथा भङ्ग आदि के पाँच गुणस्थानों में सम्भव है क्योंकि नीचगोत्र का उदय पाँचवें गुणस्थान तक सम्भव है, अतः प्रमत्तसंयत आदि आगे के गुणस्थानों में इसका अभाव बतलाया है। उच्चगोत्र का बंध दसवें सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान तक होता है, अतः पाँचवां भङ्ग आदि के दस गुणस्थानों में सम्भव है, क्योंकि इस भङ्ग में उच्चगोत्र का बंध विवक्षित है । जिससे आगे के गुणस्थानों में इसका निषेध किया है। छठा भङ्ग-उच्चगोत्र का उदय और उच्च-नीच गोत्र की सत्ता-उपशान्तमोह गुणस्थान से लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान के द्विचरम समय तक होता है। क्योंकि नीचगोत्र की सत्ता यहीं तक पाई जाती है और इस भङ्ग में नीचगोत्र की सत्ता गभित है । सातवाँ भङ्ग अयोगिकेवली गुणस्थान के अंतिम समय में होता है। क्योंकि उच्चगोत्र का उदय और उच्चगोत्र की सत्ता अयोगिकेवली गुणस्थान के अंतिम समय में पाई जाती है और इस भङ्ग में उच्चगोत्र का उदय और सत्ता संकलित है।
गोत्रकर्म के उक्त सात भंगों का विवरण इस प्रकार है
भंगक्रम
बंध
गुणस्थान
नीच
. सत्ता नीच नीच-उच्च
or orr
उदय नीच नीच उच्च नीच उच्च
१,२
.
नीच नीच उच्च उच्च
1
xur,
१,२ १,२,३,४,५ १ से १० गुणस्थान ११,१२,१३ व १४ द्विचरम समय १४ वें का चरम समय
उच्च
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