Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
मोहनीय कर्म के दस बंधस्थानों में से पहला स्थान बाईस प्रकृतिक है। इसका कारण यह है कि तीन वेदों का एक साथ बंध नहीं होता है, किन्तु एक काल में एक ही वेद का बंध होता है। चाहे वह पुरुषवेद का हो, स्त्रीवेद का हो या नपुंसकवेद का हो तथा हास्य-रति युगल और अरति-शोक युगल, इन दोनों युगलों में से एक समय में एक युगल का बंध होगा। दोनों युगल एक साथ बंध को प्राप्त नहीं होते हैं। अत: छब्बीस प्रकृतियों में से दो वेद और दो युगलों में से किसी एक युगल के कम करने पर बाईस प्रकृतियाँ शेष रहती हैं। इन बाईस प्रकृतियों का बंध मिथ्या दृष्टि गुणस्थान में होता है । ____ उक्त बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में से मिथ्यात्व को कम कर देने पर इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान होता है। यह स्थान सासादन गुणस्थान में होता है । क्योंकि मिथ्यात्व का विच्छेद पहले मिथ्यात्व गुणस्थान में हो जाता है। यद्यपि दूसरे सासादन गुणस्थान में नपुंसकवेद का भी बंध नहीं होता है, लेकिन पुरुषवेद या स्त्रीवेद के बंध से उसकी पूर्ति हो जाने से संख्या इक्कीस ही रहती है।
अनन्तानुबन्धी कषाय चतुष्क का बन्ध दूसरे गुणस्थान तक ही होता है । अत: इक्कीस प्रकृतियों में से अनन्तानुबन्धी चतुष्क को कम कर देने से मिश्र और अविरत सम्यग्दृष्टि-तीसरे, चौथे-गुणस्थान में सत्रह प्रकृतिक बंधस्थान प्राप्त होता है । यद्यपि इन गुणस्थानों में स्त्रीवेद का बंध नहीं होता है, तथापि पुरुषवेद का वहाँ बंध होते रहने से सत्रह प्रकृतिक बंधस्थान बन जाता है।
देशविरति गुणस्थान में तेरह प्रकृतिक बंधस्थान होता है। क्योंकि अप्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क का बन्ध चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक ही होता है । अत: सत्रह प्रकृतिक बंधस्थान में से अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क को कम कर देने पर पाँचवें देशविरत गुणस्थान में तेरह प्रकृतिक बंधस्थान प्राप्त होता है।
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