Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्म ग्रन्थ : गा०५
सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में छह प्रकृतिक बंध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता यह एक भंग होता है। क्योंकि इस गुणस्थान में बादर कषाय का उदय न होने से आयु और मोहनीय कर्म का बंध नहीं होता है किन्तु शेष कर्मों का ही बन्ध होता है।
उपशान्तमोह गुणस्थान में मोहनीय कर्म के उपशान्त होने से सात कर्मों का ही उदय होता है और एक प्रकृतिक बन्ध, सात प्रकृतिक उदय व आठ प्रकृतिक सत्ता, यह एक भंग पाया जाता है । _क्षोणमोह गुणस्थान में एक प्रकृतिक बंध, सात प्रकृतिक उदय और सात प्रकृतिक सत्ता यह एक ही भंग होता है । क्योंकि सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में ही मोहनीय कर्म का समूलोच्छेद हो जाने से इसका उदय और सत्व नहीं है।
सयोगिकेवली गुणस्थान में एक प्रकृतिक बंध, चार प्रकृतिक उदय और चार प्रकृतिक सत्ता, यह एक भंग होता है । क्योंकि इस गुणस्थान में चार घातिकर्मों का उदय व सत्ता नहीं रहती है।
अयोगिकेवली गुणस्थान में योग का अभाव हो जाने से किसी भी कर्म का बंध नहीं होता है, किन्तु चार प्रकृतिक उदय और चार प्रकृतिक सत्ता रूप एक भंग होता है ।
इस प्रकार से आठ गुणस्थानों में भंग-विकल्पों को बतलाने के बाद अब शेष रहे छह गुणस्थानों के भंग-विकल्पों को कहते हैं कि'छस्सुवि गुणसंनिएसु दुविगप्पो-छह गुणस्थानों में दो-दो विकल्प होते हैं । उन छह गुणस्थानों के नाम इस प्रकार हैं-मिथ्यात्व, सासादन, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत और अप्रमत्तविरत । इनमें पाये जाने वाले विकल्प यह हैं-१. आठ प्रकृतिक बंध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता तथा २. सात प्रकृतिक बंध, आठ प्रकृतिक उदय और आठ प्रकृतिक सत्ता। इन दोनों भंगों में से
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