Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
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__न खलु एयं भूयं, न एयं भव्वं, न एयं भविस्सं, जण्णं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा किवणकुलेसु वा भिक्खायरकुलेसु वा, माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइति वा, आयाइस्संति वा ।।सू१६।। एवं खलु अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा, | उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, रायन्नकुलेसु वा, इक्खागकुलेसु वा, खत्तियकुलेसु वा, हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु, विसुद्ध-जाइ-कुल-वंसेसु वा आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा ।।स.१७।। अत्थि पूण एसेऽवि भावे लोगच्छेरय-भुए अणंताहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं विइक्ताहिं समुप्पज्जइ, (ग्रन्थाग्रं १००) नामगुत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स, अवेइअस्स, अणिज्जिण्णस्स उदएणं । जन्नं अरिहंता वा, चक्कवट्टी वा बलदेवा वा, वासुदेवा वा अन्तकुलेसु वा, पन्तकुलेसु वा, तुच्छ ० दरिद्द ० भिक्खाग ० किविण ० माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा, | कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा, वक्कमति वा, वक्कमिस्संति वा, नो चेव णं जोणी-जम्मण-निक्खमणेणं निक्खमिंसु वा, निक्खमंति वा, निक्खमिस्संति वा ।।सू.१८।।
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