Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagasun Gyanmandir कल्पसूत्र ॥९ ॥ 至空凛凛辜靠賺賺賺席激盘滋滋琳琳琳離浓浓资源部商 __न खलु एयं भूयं, न एयं भव्वं, न एयं भविस्सं, जण्णं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा किवणकुलेसु वा भिक्खायरकुलेसु वा, माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइति वा, आयाइस्संति वा ।।सू१६।। एवं खलु अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा, | उग्गकुलेसु वा, भोगकुलेसु वा, रायन्नकुलेसु वा, इक्खागकुलेसु वा, खत्तियकुलेसु वा, हरिवंसकुलेसु वा, अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु, विसुद्ध-जाइ-कुल-वंसेसु वा आयाइंसु वा आयाइंति वा आयाइस्संति वा ।।स.१७।। अत्थि पूण एसेऽवि भावे लोगच्छेरय-भुए अणंताहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं विइक्ताहिं समुप्पज्जइ, (ग्रन्थाग्रं १००) नामगुत्तस्स वा कम्मस्स अक्खीणस्स, अवेइअस्स, अणिज्जिण्णस्स उदएणं । जन्नं अरिहंता वा, चक्कवट्टी वा बलदेवा वा, वासुदेवा वा अन्तकुलेसु वा, पन्तकुलेसु वा, तुच्छ ० दरिद्द ० भिक्खाग ० किविण ० माहणकुलेसु वा, आयाइंसु वा, आयाइंति वा, आयाइस्संति वा, | कुच्छिसि गब्भत्ताए वक्कमिंसु वा, वक्कमति वा, वक्कमिस्संति वा, नो चेव णं जोणी-जम्मण-निक्खमणेणं निक्खमिंसु वा, निक्खमंति वा, निक्खमिस्संति वा ।।सू.१८।। 迎球琅琅琅率瘋瞭瞭潮體驗激諒球球球球準滋滋滋球 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121