Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
॥ ४४ ॥
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|-लंकार-विभूसाए, सव्व-तुडिय-सद्द-निनाएणं, महया इड्ढीए, महया जुइए, महया बलेणं, || मूळ | महया वाहणेणं, महया समुदएणं, महया वर-तुडिय-जमग-समग-प्पवाइएणं, संख-पणव-पडह-भेरि-झल्लरि-खरमुहि-हुडुक्क-मुरज-मुइंग- दुंदुहि - निग्घोस-नाइयरवेणं उस्सुक्कं, उक्करं, उक्किठें, अदिज्जं, अमिज्जं, अभडप्पवेसं, अदंड- कुदण्डिमं, अधरिमं, गणियावर-नाडइज्ज -कलियं अणेग-तालायरा-णुचरियं, अणुद्धय- मुइंगं, (ग्रन्थाग्रं ५००) अमिलाय-मल्लदामं, पमुइय-पक्कीलिय-सपुर-जणजाणवयं दसदिवसं ठिइवडियं करेति ॥ सू. १०२ ।। तए णं सिद्धत्थे राया दसाहियाए ठिइ-वडियाए वट्टमाणीए, सइए अ साहस्सिए अ, सय-साहस्सिए य, जाए य, दाए अ, भाए अ, दलमाणे अ, दवावेमाणे अ, सइए अ, साहस्सिए अ, सय-साहस्सिए अ, लंभे पडिच्छमाणे अ पडिच्छावेमाणे अ एवं वा विहरइ ।। सू. १०३ ।। तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करेंति, तइए दिवसे चन्द-सूर-दंसणीयं करेंति, छठे दिवसे धम्म-जागरियं जागरेन्ति इक्कारसमे दिवसे वइक्कते, निव्वत्तिए असुइ- जम्म-कम्म-करणे, संपत्ते बारसाहे दिवसे, विउलं असणं पाणं खाइम साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावित्ता
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