Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 101
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ।।१०८॥ 發發發發發發發發發發發發發接發發發發發發發發發發 | हलिअंडे हल्लो-हलि-अंडे, जे निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाव पडि-लेहियव्वे भवइ, से तं अंड-सुहमे ६ । से किं तं लेण-सुहमे ? लेण-सुहमे पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा-उत्तिंग-लेणे, भिंगु-लेणे, उज्जुए, ताल-मूलए, संबुक्का-वट्टे नामं पंचमे, जे छउमत्थेणं निग्गंथेण वा निग्गंथीए वा जाणियव्वे जाव पडि-लेहियव्वे भवइ, से तं लेण-सुहुमे ७ । से किं तं सिणेह-सुहुमे ? सिणेह-सुहुमे पंचविहे पण्णत्ते, | तंजहा-उस्सा, हिमए, महिया, करए हर-तणुए । जे छउमत्थेणं निग्गंथेणं वा निग्गंथीए वा अभिक्खणं अभिक्खणं जाव पडि-लेहियव्वे भवइ, से तं सिणेह-सहमे ८ ।।सू.४५॥ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पवित्तिं वा गणिं वा गणहरं वा गणा-वच्छेअयं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छिउं आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं |गणा-वच्छेअयं, जं वा पुरओ काउं विहरइ- 'इच्छामि णं भंते ! तुब्भेहिं अब्भ 部隸撤離撒踪举靠球球球球球球球球球球球球盘数 For Private and Personal Use Only

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