Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 105
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrtm.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। ११२ ॥ 幾發邊幾邊幾幾幾幾魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 魏 幾錢 तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणा-जूसणा-जूसिए भत्तपाण-पडि-याइक्खिए पाओवगए कालं अणव-कंखमाणे विहरित्तए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए वा, उच्चारं वा | पासवणं वा परिठ्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तए, धम्मजागरियं वा जागरित्तए,' तं एवइयं वा एवइखुत्तो वा, ते य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ, ते य से नो वियरिज्जा, नो से कप्पइ, से किमाह भंते' !?, आयरिया पच्चवायं जाणंति ॥सू. ५१।। वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछणं वा अण्णयरिं वा उवहिं आयवित्तए वा पयावित्तए वा, नो से कप्पइ एगं वा अणेगं अपडिण्णवित्ता गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया विहार-भूमि वा वियारभूमि वा सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए । अत्थि य इत्थ केइ अभि-समण्णागए अहा-सण्णिहिए एगे वा अणेगे वा, कप्पइ से एवं वइत्तए'इमं ता अज्जो ! तुम मुहुत्तगं जाणेहि जाव ताव अहं गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा 球球球球球球球瞭瞭瞭瞭豪華豪華辜率球瞭弦速杂部落都激隸 वा For Private and Personal Use Only

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