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कल्पसूत्र
॥ ११३॥
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निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा आहारित्तए, बहिया || विहार-भूमिं वियार-भूमिं सज्झायं वा करित्तए, काउस्सग्गं वा ठाणं वा ठाइत्तए' से य से पडि-सुणिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइमं आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमि वियार-भूमि सज्झायं करित्तए वा । से य से नो पडि-सुणिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, असणं पाणं खाइमं साइम आहारित्तए वा, बहिया विहार-भूमि वियार-भूमि सज्झायं करित्तए वा, काउस्सग्गं |वा ठाणं वा ठाइत्तए ।।सू. ५२।। वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा| निग्गंथीण वा अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियाणं हत्तए, आयाण-मेयं, अण-भिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स अणुच्चा-कूइयस्स अणठा-बंधियस्स अमिया-सणियस्स अणा-तावियस्स अ-समियस्स अभिक्खणं अभिक्खणं अ- पडिलेहणा-सीलस्स अपमज्जणा-सीलस्स तहा तहा संजमे दुरा-राहए भवइ ||| स.५३ ।। अणायाण-मेयं अभिग्गहिय-सिज्जा-सणियस्स उच्चा-कुइयस्स
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