Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 115
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ ३ ॥ 8 瀲 B 淄 徵 撥 宿 宿 www.kobatrth.org संपादकीय निवेदन निष्कारणबंधु विश्ववत्सल चरमशासनपति श्रमण भगवान महावीरदेवे भव्यजीवोना हितने माटे स्थापेल शासन आजे विद्यमान छे अने विषम कालमा पण भव्य जीवोने माटे सर्वज्ञ परमात्मानुं ए शासन परम आलंबन रूप छे. तीर्थंकरदेवोनी अविद्यमानतामां ते ओश्रीनी वाणी शासननां प्राण स्वरूप होय छे. श्री तीर्थंकरदेवोओ अर्थथी प्ररूपेल अने गणधरदेवोओ सूत्रथी गूंथेल जिनवाणी हितकांक्षी पुन्यात्माओ माटे अमृत तुल्य छे. विद्यमान आगम श्रुतज्ञानमां मुख्यतया ४५ आगम गणाय छे. ते उपरांत पण ८४ आगमनी गणतरीने हिसाबे बीजु पण केटलूंक आगम रूपी श्रुतज्ञान विद्यमान छे. आगम सूत्री उपर निर्युक्तिओ, भाष्यो, चूर्णिओ अने टीकाओ रचायेल छे. अने ओथी सूत्र सहित आगमनी से पंचांगी जैन शासनमां मान्य छे तेना आधारे वर्तमान ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार अने वीर्याचार रूप व्यवहार प्रवर्ते छे. सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्चारित्र रूप मुक्ति मार्ग प्रवर्तमान छे. पंचांगीनो वाचना, पृच्छना, परावर्तना, अनुप्रेक्षा अने धर्मकथा रूप पंचलक्षण स्वाध्याय जेटलो जोरदार तेटली श्री संघमां सम्यग्ज्ञाननी शुद्धि जोरदार, तेनाथी ज्ञानाचार उज्वल, उज्वल ज्ञानाचारथी दर्शनाचार उज्वल, उज्वल दर्शनाचारथी चारित्राचार उज्वल, उज्वल चारित्राचारथी तपाचार उज्वल अने से चारे उज्वल आचारथी वीर्याचार उज्वल, वीर्याचारनी उज्वलताथी जैनशासन उज्वल, ए उज्वल जैन शासन सदा जयवंत वर्ते छे. आम शासननो आधार कहो के पायो कहो, मूल कहो के प्राण कहो, अ श्री जिनवाणी छे अने ते जिनवाणी ४५ मूल आगम सहित पंचांगी स्वरूप छे. पंचांगीने अनुसरता प्रकरण ग्रन्थो यावत् स्तवन सज्झाय के नाना निबंध के वाक्य स्वरूप छे. उपशम विवेक संवर अत्रिपदी स्वरूप जिनवाणीथी घोर पापी चिलातीपुत्र पतनना मार्गथी नीकली प्रगतिमार्गना मुसाफर बनी गया हता. ४५ मूल आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिवरो छे, साध्वीजी महाराजो श्री आवश्यक सूत्र आदि मूल For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 攤 海 徵 選 在 淄 粗 螢 遨 遊 || 3 ||

Loading...

Page Navigation
1 ... 113 114 115 116 117 118 119 120 121