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लाख श्लोक प्रमाण मूल सूत्रो कंठस्थ करी धारी राखनारा अनेक गणो मुनिवरोमां थइ शकशे. 'ज्ञानधनाः साधवः' 'शास्त्रचक्षुषः | साधवः ए विधान मुजब श्रमण संघना प्राण समान आ आगम सूत्रोनु श्री श्रमण भगवंतो द्वारा विशेष परिशीलन थता श्रीसंघने माटे
श्री शासनने माटे घणी उज्वलता फेलाशे अने ए आशयथी स्वपरना श्रेयकारी आगम सूत्रोनां संशोधन संपादनमा अविरत उत्साह | प्रवर्तमान छे. आगम पंचांगी आदि साहित्य प्रकाशित थाय छे. आ बारसा सूत्र प्रथम २०३२ मा मूल प्रगट थयेल पाछळ्थी चित्रो छपायेला. चित्र सहित प्रकाशित पण थाय छे. समास छटा पाडीने सरलताथी वांची शकाय तेम कर्य छे.
चरम तीर्थपति श्रमण भगवान महावीर देवे प्रकाशेल जिनवाणीनो प्रभाव पांचमा आराना छेडा सुधी रहेशे. ओ ज्वलंत | जिनवाणीनो प्रकाश आपणा आत्माने योग्यता अने अधिकार मुजब अजवालनारो बने, जिनवाणीनी उपासना भक्तिमा भावना पूर्वक रस लइ रह्यो छु ते भावोल्लास टकी रहे अने सौ श्रुत आराधनामा उजमाल बनीओ एज मारा अंतरनी शुभ अभिलाषा छे.
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वीर सं. २५१९ वि. सं. २०४९ महा वद १० मंगलवार ता. १६-२-९३ जैन उपाश्रय, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर
हालारदेशोद्धारक कविरत्न पूज्य आचार्यदेव श्रीमद्विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराजानो चरणसेवक
जिनेन्द्रसूरि
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