Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ Shri Mahar Jain Aradhana Kendra www.kabatm.org Acharya Shri Kaliassaga suyanmandir मूळ ॥ ११७ ॥ कल्पसूत्र || सवागरणं भुज्जो भुज्जो उवदंसेइ त्ति बेमि ॥ सू. ६४ || इति सामाचारीनामकं तृतीयं वाच्यम् ॥ ३ ॥ इति पज्जोसवणाकप्पं नाम दसासुअखंधस्स अट्ठम-मज्झयणं समत्तं ॥ (ग्रंथाग्रं १२१५) ।। श्रुतकेवली श्री भद्रबाहुस्वामिविरचितं श्रीमद्दशाश्रुतस्कन्धान्तर्गतं श्री कल्पसूत्रं (बारसासूत्र) समाप्तम् ॥ 应率辜辜辜辜濂賺賺賺賺賺滋滋球球球球球球兹海 球球空球控浓部都踪踪踪踪踪踪踪球球球球球 | || श्री तपागच्छ-गगनाङ्गण-दिनमणि-पन्न्यासप्रवर-श्री बुद्धिविजय-गणिवर-पादाम्बुज-भृत्रायमान-पन्यास-श्रीमदाणंदविजय-गणिवरचरणचन्द्रचकोर-मुनिप्रवर-श्री हर्षविजय-मुनीन्द्राभिघ्र-सरसिरुह-मानस-राजहंस-तपोमूर्ति-जैनाचार्य-श्रीमद्विजय कर्पूर-सूरीश्वर-पट्टधरशासनप्रतिवादीभकण्ठीरव-हालारदेशोद्धारक-कविरत्नाचार्यदेव-श्रीमद्विजयामृतसूरीश्वर-चचच्चरणचञ्चरीक प्राचीनसाहित्योद्धारकाचार्य-देवश्री विजय-जिनेन्द्र सूरीश्वर-संशोधित-सम्पादितं-श्रीमत्कल्पसूत्रं समाप्तम् ॥ ११७ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121