Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र मळ || ११६ ॥ 發發發發發發發發發發發發發强强强强强强强强强發發號 वा समणा भगवंतो पडिजागरंति ॥सू. ६१।। वासावासं पज्जोसवियाणं कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा गिलाण-हेउं जाव चत्तारि पंच जोयणाई गंतुं पडि-नियत्तए, अंतरावि से कप्पइ वत्थए, नो से कप्पइ तं रंयणिं तत्थेव उवायणावित्तए ॥ सू. ६२ ।। । इच्चेयं संवच्छरिअं थेरकप्पं अहा-सुत्तं अहा-कप्पं अहा-मग्गं अहातच्चं सम्म काएण फासित्ता पालित्ता सोभित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहित्ता आणाए अणु-पालित्ता अत्थे-गइआ समणा निग्गंथा तेणेव भव-ग्गहणेणं सिझंति बुझंति मुच्चंति परिनिव्वाइंति सव्व-दुक्खाणमंतं करिति, अत्थेगइया दुच्चेणं भव-ग्गहणेणं सिझंति जाव | सव्व-दुक्खाण-मंतं करिंति, अत्थेगइया तच्चेणं भव-ग्गहणेणं जाव अंतं करिति, | सत्तठ्ठ-भव-ग्गहणाइं नाइक्कमंति ।।सू. ६३॥ ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहे नगरे गुण-सिलए | चेइए, बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूणं सावियाणं बहूणं देवाणं || हूणं देवीणं मज्झगए चेव एवमा-इक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ, पज्जोसवणा-कप्पो नाम अज्झयणं सअट्ठ सहेउअं सकारणं ससुत्तं सअत्थं सउभयं 激踪踪踪踪牵豪華瞭染率染率染黎黎苏苏豪華泰藥華藥 嘉 ||| ११६ ॥ For Private and Personal Use Only

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