Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 102
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ॥ १०९ ॥ 滋滋溜滋溜滋臨稳治療滋滋滋盈盈总郡踪踪踪踪踪染整 णुण्णाए समाणे गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, ते | य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा | पवि-सित्तए वा, ते य से नो वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा । से किमाहू भंते ! आयरिया पच्चवायं| जाणंति ।।सू. ४६।। एवं विहार-भूमि वा वियार-भूमि वा अन्नं वा जंकिंचि पओअणं, एवं गामा-णुगामं दूइज्जित्तए ।सू. ४७|| वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अण्णयरिं विगई आहारित्तए, नो से कप्पइ से अणा-पुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणा-वच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा थेरं पवित्तिं गणिं गणहरं गणावच्छेययं वा जं वा पुरओ काउं विहरइ, ‘इच्छामि णं भत्ते ! तुब्भेहिं अब्भ-णुण्णाए समाणे अन्नयरिं | | विगई आहारित्तए, तं एवइयं वा एवइ-खुत्तो वा', ते य से वियरिज्जा एवं से कप्पइ | अण्णयरिं विगई आहारित्तए, ते य से नो वियरिज्जा एवं से नो कप्पइ अण्णयरिं विगई आहारित्तए, से किमाहु भंते ! आयरिया पच्चवायं जाणंति ।।सू. ४८॥ वासावासं 鐵器盘激盪踪踪踪踪踪盘激盪盘总踪踪踪踪踪踪球球激 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121