Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। १०५ ।। www.kobatrth.org इत्थ केइ पंचमे खुड्डए वा खुड्डिया इ वा, अन्नेसिं वा संलोए स- पडि - दुवारे एवं हं कप्पइ एगयओ चिट्ठित्तए ॥सू. ३८ (२९० ) ॥ (चित्र नं. ४0 ) Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मूळ चित्र नं. ६४० वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु - पविठ्ठस्स निगिज्झिए निगिज्झिए वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पर से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पर एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिठ्ठित्तए, एवं चउभंगी । अत्थि णं इत्थ केइ पंचमए थेरे वा थेरिया वा अन्नेसिं वा संलोए सपडि - दुवारे, एवं से कप्पर एगयओ चिठ्ठित्तए । एवं व निग्गंथीए अगारिस्स य भाणियव्वं ॥ सू. ३९|| वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अपरिण्णएणं अपरिण्णयस्स अट्ठाए असणं वा पाणं वा |खाइमं वा साइमं वा जाव पडि - गाहित्तए ॥सू. ४०|| से किमाहु भंते ! इच्छा परो अपरिण्णए भुंजिज्जा, इच्छा परो न भुंजिज्जा ।। सू. ४१|| वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा उद-उल्लेण वा स-सिणिद्वेण वा कारणं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं आहारित्तए ||सू. ४२|| से किमाहु भंते ! सत्त ॥ १०५ ॥ वा

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