Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
||१०४ ||
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॥सू. ३५ ॥ वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइ-कुलं | पिंडवाय-पडियाए अणु - पविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियड - गिहंसि वा अहे रुक्खमूलसि वा उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ पुव्व-गहिएणं भत्त-पाणेणं वेलं उवायणा - वित्तए, कप्पर से पुव्वामेव वियडगं भुच्चा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय संलिहिय संपमज्जिय संपमज्जिय एगाययं भंडगं कट्टु सावसेसे सूरे जेणेव उवस्सए तेणेव उवागच्छित्तए, नो से कप्पइ तं रयणि तत्थेव उवायणा- वित्तर || सू. ३६|| वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइ - कुलं पिंडवाय-पडियाए अणु - पविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पर से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा उवागच्छित्तए ॥सू. ३७|| तत्थ नो से कप्पर एगस्स निग्गंथस्स एगाए य निग्गंथीए एगओ चिठ्ठित्तए १, तत्थ नो कप्पर एगस्स निग्गंथस्स दुण्हं निग्गंथीणं एगओ चिठ्ठित्तए २, तत्थ नो कप्पर दुण्हं निग्गंथाणं एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिठ्ठित्तए ३, तत्थ नो कप्पइ दुण्हं निग्गंथाणं दुण्हं निग्गंथीण य एगयओ चिठ्ठित्तए ४, अत्थि य
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।। १०४ ॥

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