Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 95
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ १०३ ॥ 治療踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪踪賺賺賺賺賺率激激 पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्प-वुठ्ठिकायंसि संत-रुत्तरंसि गाहावइ-कुलं भत्ताए वा. पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥सू. ३१|| (ग्रं. ११००) वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंत्थस्स निग्गंथीए वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडिआए अणु -प्पविठ्ठस्स निगिज्झिय निगिज्झिय वुठ्ठिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियड-गिहंसि वा, अहे रुक्ख-मूलंसि वा उवागच्छित्तए ॥सू. ३२|| तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते | भिलिंग-सूवे, कप्पड़ से चाउलोदणे पडिगा-हित्तए, नो से कप्पइ भिलिंग-सूवे ।। पडिगाहित्तए ॥सू. ३३।। तत्थ से पुव्वा-गमणेणं पुव्वा-उत्ते भिलिंग-सूवे पच्छा-उत्ते चाउलो-दणे, कप्पड़ से भिलिंग-सूवे पडि-गाहित्तए, नो से कप्पड़ चाउलो-दणे पडि-गाहित्तए |सू. ३४॥ तत्थ से पुव्वा-गमणेणं दोवि पुव्वा-उत्ताई | कप्पंति से दोवि पडि-गाहित्तए । तत्थ से पुव्वा-गमणेणं दोवि पच्छात्ताई, एवं नो से कप्पंति दोवि पडि-गाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वा-गमणेणं पुव्वा-उत्ते से कप्पइ |पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुव्वा-गमणेणं पच्छाउत्ते, नो से कप्पई पडि-गाहित्तए 球鄰球球球球球球球球球灘球鄰球球球球球華率率率率率非 ॥ १०३ ॥ For Private and Personal Use Only

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