Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 93
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org कल्पसूत्र ॥ १०१ ॥ उसिण - वियडे पडि - गाहित्तए से वि य णं असित्थे नोवि य णं ससित्थे ४। वासावासं * पज्जोसवियस्स भत्त- पडि - याइक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिण - वियडे | पडि - गाहित्तए, सेवि य णं असित्थे नो चेव णं ससित्थे सेवि य णं परिपूए नो चेव णं अपरिपूए सेवि य णं परिमिए नो चेव णं अपरिमिए, सेवि अ णं बहु - संपन्ने नो चेव णं अबहु- संपन्ने ॥ सू. २५॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only मूळ वासावासं पज्जोसविअस्स संखा - दत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडि - गाहित्तए पंच पाणगस्स अहवा चत्तारि भोयणस्स पंच पाणगस्स, अहवा पंच-भोअणस्स चत्तारि पाणगस्स १। तत्थ णं एगा दत्ती लोणा - सायण मित्तमवि पडि - गाहिआ सिआ, कप्पर से तद्दिवसं तेणेव भत्तठ्ठणं पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दुच्चपि गाहावइ - कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा २ ॥सू. २६ ॥ वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा जाव उवस्सयाओ सत्त - घरंतरं संखडि संनियट्ट - चारिस्स एत्तए, एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पइ जाव उवस्सयाओ परेणं सत्त- घरंतरं संखडिं संनियट्ट चारिस्स एत्तए, एगे पुण एवमाहसु ॥ १०१ ॥

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