Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 91
________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ९९ ।। 越弦瞭瞭瞭瞭瞭瞭球率聯賺賺賺賺賺賺賺賺踪踪踪踪豫亞源強 थिज्जाई वेसा-सियाई सम्मयाई बहुमयाइं अणुमयाइं भवंति, तत्थ से नो कप्पइ अदक्खु, वइत्तए-अत्थि ते आउसो ! इमं वा इमं वा, से किमाहु ? भंते !, सड्ढी गिही गिण्हइ वा, तेणियंपि कुज्जा ||सू. १९|| वासावासं पज्जोसवियस्स निच्च-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगं गोयर-कालं गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, नन्नत्था-यरियवेयावच्चेण वा एवं उवज्झाय-वे यावच्चेण वा, तवस्सि-वे यावच्चेण वा, गिलाण-वेयावच्चेण वा, खुड्डएण वा खुड्डियाए वा अव्वंजण-जायएण वा ॥सू. २०।। |वासावासं पज्जोसवियस्स चउत्थ-भत्तियस्स भिक्खुस्स अयं एवइए विसेसे-जं से पाओ निक्खम्म पुव्वामेव वियडगं भुच्चा पिच्चा पडिग्गहगं संलिहिय संपमज्जिय से य संथरिज्जा, कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तढेणं पज्जोसवितए-से य नो संथरिज्जा, एवं से कप्पइ दुच्चंपि गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥सू. २१|| 球球球球球球球球非率非瞭離華隸輩球球 球球率率球球球球球 For Private and Personal Use Only

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