Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
मूळ
।। १०० ॥
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वासावासं पज्जो-सवियस्स छठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति दो गोयर-काला गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा ॥सू. २२।। वासावासं पज्जोसवियस्स अट्ठम-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ गोअर-काला गाहावइ-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥सू. २३।। वासावासं पज्जोसवियस्स विगिठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वेवि गोअर-काला गाहावइ-कुलं | भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ।।सू. २४।। ___ वासावासं पज्जोसवियस्स निच्च-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वाइं पाणगाई | पडि-गाहित्तए । वासावासं पज्जोसवियस्स चउत्थ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडि-गाहित्तए । तं जहा-उस्सेइम, संसेइम, चाउलोदगं १। वासावासं पज्जोसवियस्स छठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाई पडि-गाहित्तए, तं जहा तिलोदगं वा, तुसोदगं वा, जवोदगं वा २ । वासावासं पज्जोसवियस्स अठ्ठम-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ पाणगाइं पडि-गाहित्तए, तंजहा-आयामे वा, सोवीरे वा, सुद्धवियडे वा ३। वासावासं पज्जोसवियस्स विगिठ्ठ-भत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे
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।। १०० ॥
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