Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
॥ ७७ ॥
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सत्तमे पक्खे, फग्गुण - बहुले तस्स णं फग्गुण - बहुलस्स इक्कारसी- पक्खे णं पुव्वण्हकाल - समयंसि, पुरिमतालस्स नयरस्स बहिआ, सगड- मुहंसि उज्जाणं सि नग्गोह - वर - पायवस्स अहे, अठ्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं, आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, झाणंतरिआए वट्टमाणस्स अणंते जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ||सू. २११|| उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स चउरासीइ गणा, चउरासीइ गणहरा हुत्था || सू. २१२ ।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स उसभसेण - पामुक्खाणं चउरासीओ समण - साहसीओ उक्कोसिया समण - संपया हुत्था || सू. २१३ || उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स बंभिसुंदरि - पामुक्खाणं अज्जियाणं तिण्णि सय - साहस्सीओ उक्कोसिया अज्जिया - संपा सू. २१४ ।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स सिज्जंस - पामुक्खाणं समणोवासगाणं तिण्णि सय - साहस्सीओ पंच सहस्सा उक्कोसिया समणोवासगाणं संपया हुत्था || सू. २१५।। णं अरहओ कोसलिअस्स सुभद्दा - पामुक्खाणं समणोवासियाणं पंचसय - साहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियाणं संपया हुत्था * ॥सू. २१६ ।। उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स चत्तारि सहस्सा सत्तसया पण्णासा
उसभस्स
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मूळ
।। ७७ ।।

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