Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
मूळ
॥८०॥
|मुवागएणं पुव्वण्हकाल-समयंसि संपलियंक-निसण्णे कालगए जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणे ॥सू. २२६|| उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स जाव सव्व-दुक्खप्पहीणस्स तिण्णि वासा अद्ध-नवमा य मासा विइक्ता, तओवि परं एगा सागरोवम-कोडाकोडी तिवास-अद्ध-नवम-मासाहिय-बायालीस-वास-सहस्सेहिं ऊणिया विइक्कंता, एयंमि समए समणे भगवं महावीरे पडिनिव्वुडे, तओवि परं नव-वास-सया विइक्ता, दसमस्स | य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।सू. २२७।। । ॥ इति श्रीऋषभदेव-चरित्रं ॥ प्रथमं च जिनेन्द्र-चरित्राख्यं वाच्यम् ॥१॥
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