Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
मूळ
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वच्छसगुत्तं पणिवयामि ३७ ॥१२॥ तत्तो य नाण-दंसण-चरित्त-तव-सुठ्ठियं गुण- महंतं । थेरं कुमार-धम्म', वंदामि गणिं गुणो-ववेयं ३८ ।।१३।। सुत्तत्थ-रयण-भरिए, खम-दम-मद्दव-गुणेहिं संपन्ने । देविड्ढि-खमासमणे, कासव-गुत्ते पणिवयामि ३९ ।।१४||
॥ इति स्थविराली नामकं द्वितीयं वाच्यम् ।।२।।
।। अथ सामाचारी ॥ ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे वासाणं स-वीसइ-राए मासे विइक्ते वासावासं पज्जोसवेइ ॥सू. १|| से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ ? समणे भगवं | महावीरे वासाणं सवीसइ-राए मासे विइकंते वासावासं पज्जोसवेइ ? जओ णं पाएणं
अगारीणं अगाराई कडियाई उ-कंपियाई छन्नाई लित्ताई गुत्ताइं घठाई मठाई सं-पधमियाई खाओदगाइं खाय-निद्धमणाई अप्पणो अठ्ठाए कडाइं परिभुत्ताई परि-णामियाइं भवंति, से तेणठेणं एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे वासाणं
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