Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
॥८२॥
染率染率球率聯韓球球球球球球球球球球率
थेरे अज्ज वियत्ते भारद्दाए गुत्ते णं पंच समण-सयाई वाएइ, थेरे अज्ज-सुहम्मे अग्गि-वेसायण-गुत्ते णं पंच समण-सयाई वाएइ, थेरे मंडियपुत्ते वासिठ्ठ-गुत्ते णं अद्भुठ्ठाई समण-सयाई वाएइ, थेरे मोरिय-पुत्ते कासव-गुत्ते णं अद्धठ्ठाई समण-सयाई वाएइ, थेरे अकंपिए गोयम गुत्ते णं, थेरे अयलभाया हारियायणे गुत्ते णं, ते दुण्णिवि थेरा तिण्णि तिण्णि समण-सयाई वाइंति, थेरे मेयज्जे, थेरे पभासे, एए दुण्णिवि थेरा कोडिन्नागुत्ते णं तिण्णि तिण्णि समण-सयाई वाइंति, से तेणढेणं अज्जो ! एवं |वुच्चइ- समणस्स भगवओ महावीरस्स नव गणा, इक्कारस गणहरा होत्था ।।सू. २३०|| | सव्वे एते समणस्स भगवओ महावीरस्स एक्कारसवि गणहरा दुवालसंगिणो चउद्दसपुव्विणो सम्मत्त-गणि-पिडग-धारगा रायगिहे नगरे मासिएणं' भत्तेणं अपाणएणं कालगया जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणा, थेरे इंदभूई, थेरे अज्जसुहम्मे य सिद्धिं गए महावीरे पच्छा दण्णिवि थेरा परिनिव्वया । जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति, एए णं सव्वे अज्ज-सुहम्मस्स अणगारस्स आ-वच्चिज्जा, अवसेसा गणहरा निरवच्चा वुच्छिन्ना ॥सू.४|| समणे भगवं महावीरे कासव-गुत्ते णं । समणस्स णं भगवओ
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