Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 67
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatram.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ ॥ ७५ ॥ 強強強強強強強強強強強靈發發幾资變變變變變變變錢要幾錢 नत्थि, नाभि-कुलगरो सयमेव वागरेइ ।।सू. २०६|| ते णं काले णं ते णं समए णं उसभे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं पढमे मासे, पढमे पक्खे चित्त-बहुले, तस्स णं चित्त-बहुलस्स अट्ठमी-पक्खे णं नवण्हं मासाणं बहु-पडिपुण्णाणं अद्धठ्ठमाणं राइंदियाणं जाव आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं आरोग्गा आरोग्गं दारयं पयाया। ।।सू. २०७।। तं चेव सव्वं जाव देवा देवीओ य वसुहार-वासं वासिंसु, सेसं तहेव चारग-सोहणं, माणुम्माण-वद्धणं, उस्सुक्क-माइय-ट्ठिइवडिअ-जूयवज्जं सव्वं भाणिअव्वं ।।सू. २०८।। उसभेणं अरहा कोसलिए कासव-गुत्ते णं, तस्स णं पंच नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तंजहा-उसभेइ वा, पढमराया इवा, पढम-भिक्खायरे इ वा, पढम-जिणे इ वा पढम-तित्थयरे इ वा ।।सू. २०९।। उसमेणं अरहा कोसलिए दक्खे दक्खपइण्णे पडिरूवे अल्लीणे भद्दए विणीए वीसं पुव्व-सय-सहस्साई कुमारवास-मज्झे वसित्ता तेवढ़ि च पुव्व-सय-सहस्साई कुमार-वास-मज्झे वसित्ता तेवठिं च पुव्व-सय-सहस्साइं रज्जवासमज्झे वसमाणे लेहाइआओ गणिय-प्पहाणाओ सउण-रुय-पज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ, चउसद्धिं महिला-गुणे, सिप्प-सयं च 發發強強強強強強強強強強發遊發發發發發發發發發發發 ॥ ७५ For Private and Personal Use Only

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