Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ।। ७४ ।। www.kobatirth.org च इमं - तिवास - अद्ध- नवम - मासाहिय - बायालीस - वास - सहस्सेहिं उणग - मिच्चाइ ||२||सू. २०३ || इति अन्तराणि ॥ ते णं काले णं ते णं समए णं उसमे णं अरहा कोसलिए चउ-उत्तरासाढे अभीइ - पंचमे होत्था, तंजहा - उत्तरासाढाहिं चुए - चइत्ता गब्भं वकंते जाव अभीइणा परिनिव्वुए |सू. २०४ || ते णं काले णं ते णं समए णं उसमे णं अरहा कोसलिए जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे आसाढ - बहुले, तस्स णं आसाढ - बहुलस्स चउत्थी - पक्खे णं सव्वठ्ठ - सिद्धाओ महा-विमाणाओ तित्तीसं सागरोवम-ठ्ठिइआओ अनंतरं चयं, चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इक्खाग - भूमीए नाभिस्स कुलगरस्स मरुदेवाए भारियाए पुव्व-रत्ता - वरत्त-काल - समयंसि आहार - वकंतिए जाव गब्भत्ताए वक्ते ॥सू. २०५ । (चित्र नं. ३०-३१-३२-३३) उसमे णं अरहा कोसलिए तिन्नाणोवगए आवि होत्था, तंजहा - इस्सामि त्ति जाणइ जाव सुविणे पासइ, तंजहा:-गय-वसह जाव सिहिं च ॥ गाहा । सव्वं तहेव, नवरं ● पढमं उसभं मुहेणं अनंतं पासइ सेसाओ गयं, नाभि - कुलगरस्स साहेइ, सुविण - पाढगा For Private and Personal Use Only 5 Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir मूळ चित्र नं. ३०-३१ ३२-३३ ।। ७४ ।।

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