Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
॥ ७
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| पंचसठ्ठि-लक्खा चउरासीइं च वास-सहस्सा विइक्ता, तंमि समए महावीरो निव्वुओ, तओ परं नव वास-सया विइक्कंता, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ । एवं अग्गओ जाव सेयंसो ताव दठ्ठव्वं ॥१८॥सू. १८७|| कुंथुस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे चउभाग-पलिओवमे विइकंते, पंचसर्व्हि च वास-सय-सहस्सा, सेसं जहा मल्लिस्स ||१७||सू. १८८।। संतिस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स एगे चउ-भागूणे पलिओवमे विइकंते पन्नलुि च सेसं जहा मल्लिस्स |१६||सू. १८९|| धम्मस्स णं अरहओ जाव सव्व- दुक्ख-प्पहीणस्स तिण्णि | सागरोवमाइं विइक्ताई, पन्नलुि च, सेसं जहा मल्लिस्स ॥१५।।१९०।। (चित्र नं. २८) __ अणंतस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स सत्त सागरोवमाइं विइकंताई, | पन्नठिं च, सेसं जहा मल्लिस्स ।।१४।।सू. १९१।। विमलस्स णं अरहओ जाव सव्वदुक्ख-प्पहीणस्स सोलस सागरोवमाइं विइकताई, पन्नठिं च, सेसं जहा मल्लिस्स ।।१३।।सू.१९२।। वासुपुज्जस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख-प्पहीणस्स छायालीसं सागरोवमाई विइक्ताई पन्नलुि च, सेसं जहा मल्लिस्स ।।१२।।स. १९३।। सिज्जंसस्स णं
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॥ ७१
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