Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
॥ ७० ॥
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चउरासीई वास-सहस्साई विइकंताई, पंचासीइमस्स वास-सहस्सस्स नव वास-सयाई विइक्कंताई, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।सू. १८३।। ।।२२।। इति श्रीनेमिनाथ-चरित्रम् ।। (चित्र नं. २७)
नमिस्स णं अरहओ कालगयस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणस्स पंच वास-सय-सहस्साइं, चउरासीइं च वास-सहस्साइं नव य वास-सयाई विइक्कताई, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।२१। ।।सू. १८४।। मुणिसुव्वयस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्खप्पहीणस्स इक्कारस वास-सय-सहस्साई चउरासीइं च वास-सहस्साई नव वाससयाई विइकंताई, दसमस्स य वास-सयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।। २० ।।सू.१८५।।
मल्लिस्स णं अरहओ जाव सव्व-दक्ख-प्पहीणस्स पन्नट्ठ वास-सय-सहस्साई चउरासीई च वास-सहस्साई नव वास-सयाई विइकताई, दसमस्स य वास-सयस्स अय असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ ।।१९।।सू. १८६।। अरस्स णं अरहओ जाव सव्व-दुक्ख -प्पहीणस्स एगे वास-कोडि-सहस्से विइक्कते, सेसं जहा मल्लिस्स, तं च एयं
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॥ ७० ॥
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