Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। ६७॥ वसित्ता णं पुणरवि लोगंतिएहिं जिअ-कप्पिएहिं देवेहिं तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव | दाणं दाइयाणं परिभाइत्ता ॥सू. १७२।। जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावणसुद्धे, तस्स णं सावण-सुद्धस्स छठ्ठी-पक्खे णं पुव्वण्ह-काल-समयंसि उत्तर-कुराए सीयाए सदेव-मणुआ-सुराए परिसाए अणु-गम्ममाण-मग्गे जाव बारवईए नयरीए | मज्झं-मज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, |उवागच्छित्ता असोग-वर-पायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ | पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरण-मल्ला-लंकारं ओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंच-मुठ्ठियं लोयं | करेइ करित्ता छटेणं भत्तेणं अपाणएणं चित्ता-नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं एगं | देव-दूसमादाय एगेणं पुरिस-सहस्सेणं सद्धिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए ।।सू. १७३|| अरहा णं अरिठ्ठनेमी चउपन्नं राइंदियाई निच्चं वोसठ्ठकाए, चियत्त-देहे, तं चेव सव्वं जाव पणपन्नगस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोय-बहुले, तस्स णं आसोय-बहुलस्स पन्नरसी-पक्खे णं दिवसस्स पच्छिमे भागे उज्जित-सेल-सिहरे वेडस-पायवस्स अहे अठ्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं 撒賺賺賺寧路發率激瞭球瞭想 球球球球数这率鄰聲帶 For Private and Personal Use Only

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