Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
।। ६५ ।।
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गड-भूमी, परियायंत - गड - भूमी य, जाव चउत्थाओ पुरिस - जुगाओ जुगंत-गड-भू तिवास - परिआए अंतमकासी ॥सू. १६६ ।। ते णं काले णं ते णं समए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए तीसं वासाई अगार - वासमज्झे वसित्ता, तेसीइं राइंदिआई छउमत्थ-परिआयं पाउणित्ता, देसूणाई सत्तरि वासाई केवलि - परिआयं पाउणित्ता, पडिपुण्णाई सत्तरि वासाई सामण्ण-परिआयं पाउणित्ता एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता खीणे * वेयणिज्जा - उय - नाम - गुत्ते इमीसे ओसप्पिणीए दूसम सुसमाए समाए बहु - विइक्कंताए क जे से वासाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे सावण सुद्धे, तस्स णं सावण - सुद्धस्स क अठ्ठमीपक्खे णं उप्पि संमेअ - सेल - सिहरंसि अप्प - चउत्तीस - इमे मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं पुव्वण्ह काल - समयंसि वग्घारिय-पाणी कालगए विइक्कते जाव सव्व - दुक्खप्पही ||सू. १६७ || पासस्स णं अरहओ ॐ पुरिसादाणीयस्स जाव सव्व- दुक्खप्पहीणस्स दुवालस वास - सयाई विक्कताई, तेरसमस्स य वास - सयस्स अयं तीसइमे संवच्छरे काले गच्छइ ||सू. १६८ ।। २३ ।। इति श्रीपार्श्वनाथचरित्रम् ||
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