Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
।। ६४ ।।
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पासस्स णं अरह ओ पुरिसादाणीयस्स पुप्फचूला-पामुक्खाओ अठ्ठत्तीसं | अज्जिया-साहस्सीओ उक्कोसिआ अज्जिया-संपया हुत्था ।।सू. १६१|| पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स सुव्वय-पामुक्खाणं समणोवासगाणं एगा सयसाहस्सीओ चउसठिं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासगाणं संपया हुत्था ।।सू. १६२|| पासस्स णं अरहओ परिसादाणीयस्स सुनंदा-पामुक्खाणं समणोवासियाणं तिण्णि सय-साहस्सिओ सत्तावीसं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासियाणं संपया हुत्था ।। सू. १६३ ।। पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अद्धठ्ठ-सया चउद्दस-पुव्वीणं अजिणाणं जिण-संकासाणं सव्व-क्खरसन्निवाईणं जाव चउद्दस-पुव्वीणं संपया हुत्था ।।सू. १६४|| पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स चउद्दस सया ओहिनाणीणं, दस सया केवलनाणीणं, इक्कारस सया वेउव्वियाणं, छस्सया रिउमईणं, दस समणसया सिद्धा, वीसं अज्जिया-सयाई सिद्धाइं, अद्धठ्ठम-सया विउलमईणं, छस्सया वाईणं, बारस सया अणुत्तरो-ववाइयाणं सू. १६५।। पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स दुविहा अंतगड-भूमी हुत्था, तंजहाः-जुगंत
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॥६४ ॥
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