Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कल्पसूत्र ॥ ५० ॥ www.kobatrth.org सव्व-संगमेणं, सव्व - पगईएहिं सव्व - नाडएहिं, सव्व - तालायरेहिं, सव्वा वरोहेणं सव्वपुप्फ-गंध-वत्थ-मल्लालंकार - विभूसाए सव्व - तुडिय - सद्द - सन्नि-नाएणं, महया इड्ढीए, महया जुईए, महया बलेणं, महया वाहणेणं, महया समुदएणं, महया वर - तुडिय - जमग- समग-प्पवाइएणं, संख - पणव- पडह - भेरि - झल्लरि - खरमुहि- हुडुक्क - दुंदुहिणिग्घोस-नाइयरवेणं, कुंडपुरं नगरं मज्झं मज्झेणं निग्गच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव नाय - खंड -वणे उज्जाणे जेणेव असोग - वर पायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता असोग - वर - पायवस्स अहे सीयं ठावेइ, ठावित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेव आभरण-मल्ला-लंकारं ओमुयइ, आमुइत्ता सयमेव पंच- मुट्ठियं लोयं करेइ, करित्ता छठ्ठेणं भत्ते अपाणणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं एगं देवदूस-मादाय, एगे अब | मुण्डे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए || सू. ११५ ।। (चित्र नं. ११ - १२) समणे भगवं महावीरे संवच्छरं साहियं मासं जाव चीवरधारी होत्था तेण परं अचेलए पाणिपडिग्गहिए समणे भगवं महावीरे साइरेगाई दुवालस - वासाई निच्चं वोसठ्ठकाए, चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा - दिव्वा वा, माणुसा वा, तिरिक्ख - जोणियावा, अ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir 嫩 मूळ चित्र नं. ११-१२ ॥ ५० ॥

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