Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
मूळ
|४८ ॥
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चिच्चा रज्जं, चिच्चा रठ्, एवं बलं वाहणं कोसं कोठागारं, चिच्चा पुरं, चिच्चा अंतेउरं, चिच्चा | जणवयं, चिच्चा विपुल-धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल- प्पवाल
रत्त-रयण-माइअं संत-सार-सावइज्जं, विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता दाणं दायारेहिं परिभाइत्ता दाणं | दाइयाणं परिभाइत्ता ।। सू. ११२ ।। ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिर-बहुले तस्स णं मग्गसिर-बहुलस्स दसमी पक्खे णं पाईण-गामिणाए छायाए पोरिसीए अभि-निव्वट्टाए पमाण-पत्ताए सुव्वए णं दिवसे णं, विजए णं मुहुत्ते णं, चंदप्पभाए सिबियाए सदेव-मणुया-सुराए परिसाए समणुगम्म-माण-मग्गे संखिय-चक्किय-लंगलिय-मुह-मंगलिय-बद्धमाण-पूसमाण-घंटियगणेहिं ताहिं इठ्ठाहिं जाव वग्गूहिं अभि-नंदमाणा अभि-थुव्वमाणा य एवं वयासी ।। सू. ११३ ।। जय जय नंदा ! जय जय भद्दा ! भदं ते खत्तिय-वर-वसहा अभग्गेहिं नाण-दसण-चरित्तेहिं अजियाई जिणाहि इंदियाइं, जियं च पालेहि समण-धम्म, जिय-विग्घो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धि-मज्झे, निहणाहि राग-दोस-मल्ले, तवेणं धिइ-धणिय-बद्ध-कच्छे, मद्दाहि अठ्ठ-कम्म-सत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहण-पडागं च वीर ! तेलुक्क
踪踪踪華豪空豪華海盜盜泰寧 歷幸率举鄰
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