Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
* पीइ-सक्कारेणं अईव अईव अभिवड्ढामो, सामन्त - रायाणो वसमागया य ।। सू. १०६ ।। तं जया णं अम्हं एस दारए जाए भविस्सइ तया णं अम्हे एयस्स दारगस्स इमं एयाणुरूवं गुण्णं गुण - निप्फन्नं नामधिज्जं करिस्सामो वद्धमाणु त्ति । ता अम्हं अज्ज मणोरह - संपत्ती जाया, तं हो णं अम्हे कुमारे वद्धमाणे नामेणं ।। सू. १०७ ॥ समणे भगवं महावीरे कासवगत्ते णं तस्स णं तओ नामधिज्जा एव - माहिज्जंति, तं जहा - अम्मा- पिउ - संतिए वद्धमाणे १, सह- समुइयाए समणे २, अयले भयभेरवाणं, परीसहो- वसग्गाणं, खंतिखमे, पडिमाणं पालए, धीमं अरति - रतिसहे, दविए, वीरिय-संपन्ने देवेहिं से णामं कयं समणे भगवं महावीरे ३ ॥ सू. १०८ ॥ समणस्स भगवओ महावीरस्स पिया कासव-गुत्ते णं तस्स णं तओ नामधिज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहाः - सिद्धत्त्थे इ वा, सिज्जंसे इ वा, जससे इ वा । समणस्स भगवओ महावीरस्स माया वासिठ्ठस-गुत्ते णं तीसे तओ नामधिज्जा एव - माहिज्जन्ति, तं जहा - तिसला इ वा, विदेहदिन्ना इवा, पीइकारिणी इ वा । समणस्स भगवओ महावीरस्स पित्तिज्जे सुपासे, जिठ्ठे भाया नंदिवर्द्धणे, भगिणी सुदंसणा, भारिया जसोया कोडिन्ना-गुत्ते णं । समणस्स भगवओ महावीरस्स धूआ कासवगत्ते णं तीसे दो नामधिज्जा एव-माहिज्जंति, तं जहा - अणोज्जा इ वा,
।। ४६ ।।
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