Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
मूळ
।। ४९ ।।
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| रंग-मज्झे, पावय वितिमिर-मणुत्तरं केवल-वरनाणं, गच्छ य मुक्खं परं पयं जिणवरो-वइलेणं मग्गेणं अकुडिलेणं हंता परीसह-चमुं, जय जय खत्तिय-वर-वसहा ! बहूई दिवसाई, बहूई पक्खाई, बहूई मासाई, बहूई उऊई, बहूई अयणाई, बहूई संवच्छराई, अभीए परीसहो-वसग्गाणं, | खंति-खमे भय-भेरवाणं धम्मे ते अविग्धं भवउ त्ति कटु जय-जयसदं पउंजंति ।। सू.११४ ।। तए णं समणे भगवं महावीरे नयण-माला-सहस्से हिं पिच्छिज्जमाणे पिच्छिज्जमाणे, वयण-माला-सहस्सेहिं अभि-थुव्वमाणे अभि-थुव्वमाणे, हियय-माला-सहस्से हिं उन्नंदिज्जमाणे उन्नंदिज्जमाणे, मणोरह-माला-सहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे, कंति-रूव-गुणेहिं पत्थिज्जमाणे पत्थिज्जमाणे, अंगुलि-माला-सहस्सेहिं दाइज्जमाणे दाइज्जमाणे, दाहिण-हत्थेणं बहूणं नर-नारि-सहस्साणं अंजलिमाला- सहस्साइं पडिच्छमाणे पडिच्छमाणे, भवण-पंति-सहस्साइं सम-इक्कमाणे सम-इक्कमाणे, तंती-तल-ताल-तुडिय -गीय-वाइय-रवेणं महुरेण य मणहरेणं जयजय-सद्दघोस-मीसिएणं मंजु-मंजुणा घोसेण य पडि-बुज्झमाणे पडि-बुज्झमाणे, सव्वि-ड्ढीए, सव्व-जुईए, सव्व-बलेणं, सव्व-वाहणेणं, सव्व-समुदएणं, सव्वा-यरेणं, सव्व-विभूइए, सव्व-विभूसाए, सव्व-संभमेणं, |
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