Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.birth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कल्पसूत्र ।। १५ ॥ 琼琳琳離瞭率遠滋滋賺賺賺賺賺強強聯腺激臨球海 साहरइ, साहरित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए ।सू. २७|| ताए उक्किठ्ठाए, तुरियाए, चवलाए, चंडाए, जयणाए, उधुआए, सिग्घाए, दिव्वाए, देवगइए, |तिरिअ-मसंखिज्जाणं दीवसमुद्दाणं मझमज्झेणं जोअण-सयसाहस्सिएहिं विग्गहेहिं | उप्पयमाणे जेणामेव सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिंसए, विमाणे, सक्कंसि सीहासणंसि, सक्के देविंदे देवराया, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो | एअमाणत्तिअं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ ।।सू. २८॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं | महावीरे जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोअबहुले तस्स णं आसोअबहुलस्स | तेरसीपक्खेणं बासीइ राईदिएहिं विइक्कंतेहिं तेसीइमस्स राइंदिअस्स अंतरा वट्टमाणे | हिआणुकंपएणं देवेणं हरिणेगमेसिणा सक्कवयण-संदिढणं माहणकंडग्गामाओ नयराओ उसभदत्तस्स माहणस्स कोडालसगुत्तस्स भारिआए देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छीओ खंत्तिअकुंडग्गामे नयरे नायाणं खत्तिआणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासव गुत्तस्स भारिआए तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठस-गुत्ताए पुव्वरत्ता-वरत्त-काल-समयंसि हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोग-मुवागएणं अव्वाबाहं अव्वाबाहेणं दिव्वेणं पहावेणं कुच्छिसि 球嫩嫩嫩撒 獻球球球球嫩嫩嫩嫩球球 球聯淋油撒球范 For Private and Personal Use Only

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