Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र ।। १६ ।। 遊遊發強強發發發發強強強強強強寶發邊郊遊露露醬强强强强 गब्भत्ताए साहरिए ।सू. २९॥ ते णं काले णं ते णं समएणं समणे भगवं महावीरे तिन्नाणो-वगए आवि होत्था, साहरिज्जिस्सामि त्ति जाणइ, साहरिज्जमाणे नो जाणइ, साहरिएमि त्ति जाणइ ।।सू. ३०।। जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छिओ तिसलाए खत्तिआणीए वासिट्ठस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरिए, तं रयणिं च णं सा देवाणंदा माहणी सयणिज्जंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे | एआरूवे उराले जाव चउद्दस-महासुमिणे तिसलाए खत्तिआणीए हडेत्ति पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं जहा-गय वसह जाव सिहं च-गाहा ।।सू. ३१।। जं रयणिं च णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदाए माहणीए जालंधरस-गुत्ताए कुच्छिओ तिसलाए खत्तिआणीए वासिठ्ठस-गुत्ताए कुच्छिसि गब्भत्ताए साहरिए, तं रयणिं च णं सा तिसला खत्तिआणी तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अधिभतरओ सचित्त-कम्मे, बाहिरओ दूमिअ-घट्टे मढे, | विचित्त-उल्लोअ-चिल्लिअ-तले मणि-रयणपणासि-अंधियारे, बहुसम-सुविभत्त-भूमिभागे, - पंचवन्न-सरस-सुरहि- मुक्क-पुप्फ- पुंजोवयार-कलिए, कालागुरु- पवर-कुंदुरुक्क – || 瞭瞭率率都难激稳激盪 激激賺染率染帶串聯 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121