Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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कल्पसूत्र
मळ
।। ३०॥
तेयसा जलंते तस्स य कर-पहरा-परद्धंमि अंधयारे बालायव-कुंकुमेणं खचियव्वे | जीवलोए सयणिज्जाओ अब्भुढेइ ॥ सू. ६० ॥ सयणिज्जाओ अब्भुठ्ठित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेग-वायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दण-मल्ल-जुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते, सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंध-वर-तिल्ल-माइएहिं पीणणिज्जेहिं दीवणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं बिहणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं सर्विदिय-गाय-पल्हाय-णिज्जेहिं अब्भंगिए समाणे, तिल्ल-चम्मंसि निउणेहिं पडिपुन्न-पाणि-पाय-सुकुमाल-कोमल-तले हिं अब्भंगण-परि-मद्दणुव्वलण-करण-गुण-निम्माएहिं छेएहिं दक्खेहिं पठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं जिय-परिस्समेहिं पुरिसेहिं अठ्ठि-सुहाए मंससुहाए तयासुहाए रोमसुहाए चउव्विहाए सुह-परिक्कमणाए संबाहणाए संबाहिए समाणे, अवगय खेयपरिस्समे अट्टण-सालाओ पडिनिक्खमइ ।। सू. ६१ ।। अट्टणसालाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता स-मुत्तजालाकुला-भिरामे विचित्त-मणि-रयण-कुट्टिम-तले रमणिज्जे न्हाण-मंडवंसि,
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॥ ३० ॥
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