Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kaliassagarsun Gyanmandir मूळ कल्पसूत्र नाणा-मणि-रयण-भत्ति-चित्तंसि ण्हाण-पीढंसि सुह-निसण्णे, पुप्फोदएहि अ, || गंधोदएहि अ, उण्होदएहि अ, सहोदएहि अ. सद्धोदएहि अ. कल्लाण-करण-पवर|| ३१ ॥ मज्जण-विहीए मज्जिए । तत्थ कोउअ-सएहिं बहुविहेहिं कलाणग-पवर-मज्जणावसाणे, पम्हलसुकुमाल-गंध-कासाइअ-लूहिअंगे, अहय-सु-महग्घ-दूस-रयण-सुसंवुडे, सरस-सुरभि-गोसीस-चंदणा-णुलित्त-गत्ते, सुइ-माला-वण्णग-विलेवणे, आविद्धमणि-सुवन्ने कप्पिय-हार-द्धहार-ति-सरय-पालब-पलंबमाण-कडिसुत्त-सुकय-सोहे, पिणद्ध-गेविज्जे, अंगुलि-ज्जग-ललिय-कया-भरणे, वर-कडग-तुडिय-थंभिय-भूए, अहिय-रूव-सस्सिरीए, कुंडल-उज्जोइ-आणणे, मउड-दित्त-सिरए हारुत्थय-सुकय - रइय-वच्छे, मुद्दिया-पिंगलंगुलिए, पालंब पलंबमाण-सुकय-पड-उत्तरिज्जे, नाणामणि-कणग-रयण-विमल-महरिह-निउणो-वचिय-मिसिमिसिंत-विरइय-स-सिलिट्ठ - विसिठ्ठ-लठ्ठ-आविध-वीर-वलए, किं बहुणा ? कप्परुक्खए-विव अलंकिय-विभूसिए नरिंदे, सकोरिंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेय-वर-चामराहिं उधुव्व-माणीहिं मंगल-जय-सद्द-कयालोए अणेग्गण-नायग-दंड-नायग-राईसर 踪踪踪踪稳激激激悲激淋賺賺賺賺賺賺賺賺賺賺華 球郡湖鄰鄰激激嘟嘟嘟嘟賺賺賺賺賺賺賺激聯串聯激草球球 For Private and Personal Use Only

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