Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kalassagarsunl Gyanmandir कल्पसूत्र मूळ || ३५ ॥ 0000000000000000000000000 |लद्धठ्ठा गहियठ्ठा पुच्छियठा वि-णिच्छियठा, अहिगयठ्ठा सिद्धत्थस्स रण्णो पुरओ सुमिण || - सत्थाई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी ॥ सु. ७२ ॥ एवं खल देवाणुप्पिया ! अम्हं सुमिण-सत्थे बायालीसं सुमिणा तीसं महा-सुमिणा, बावत्तरि सव्वसुमिणा दिठ्ठा । तत्थ णं देवाणुप्पिया ! अरहंत-मायरो वा, चक्कवट्टि-मायरो वा, अरहतंसि वा, चक्कहरंसि वा, गभं (ग्रं. ४०० ) वक्क-माणंसि एएसिं तीसाए महा-सुमिणाणं इमे चउद्दस महा-सुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति ॥ सू. ७३ ।। तं जहाः-गय-वसह' गाहा ।। सू. ७४ ।। वासुदेव-मायरो वा वासुदेवंसि गब्भं वक्कमाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महा-सुमिणाणं अन्नयरे सत्त महा-सुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति ।। सू. ७५ ।। बलदेव-मायरो वा बलदेवंसि गब्भं वकमाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महा-सुमिणाणं अन्नयरे चत्तारि महा-सुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति ॥सू. ७६।। मंडलिय-मायरो वा मंडलियंसि गभं | वक्कमाणंसि एएसिं चउद्दसण्हं महा-सुमिणाणं अन्नयरं एगं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति ।। सू. ७७ ।। इमे य णं देवाणुप्पिया ! तिसलाए खत्तिआणीए चउद्दस महा-सुमिणा दिठ्ठा, तं उराला णं देवाणप्पिया ! तिसलाए खत्तियाणीए सुमिणा दिठ्ठा जाव मंगलकारगा णं 離球球球球球巡線索賺賺賺臨臨治进球 3298 || ३५ ॥ For Private and Personal Use Only

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