Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 45
________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kabat.org Acharya Shri Kalassagarsun yanmandir कल्पसूत्र ४१ ।। मूळ चित्र नं. ६ 線路臨安源率瞭瞭革賺靈滋应臺產險部球球 नाइ-निद्धे हिं, नाइ-लुक्खेहिं, नाइ-उल्लेहिं, नाइ-सुक्केहिं, सव्व-त्तुग-भयमाण-सुहेहिं, भोयणा-च्छायण-गंध-मल्लेहिं, ववगय-रोग-सोग-मोह-भय-परिस्समा, सा जं तस्स गब्भस्स हिअं मियं पत्थं गब्भ-पोसणं तं देसे य काले य आहार-माहारेमाणी, विवित्त-मउएहिं सयणा-सणेहिं पइरिक्क-सुहाए मणा-णुकुलाए विहार-भूमीए, पसत्थ-दोहला, संपुण्णदोहला, सम्माणिय-दोहला, अविमाणिय-दोहला, वुच्छिन्न-दोहला, ववणीय-दोहला सुहं सुहेणं आसइ, सयइ, चिठ्ठइ, निसीयइ, तुयट्टइ, विहरइ, सुहं सुहेणं तं गब्भं परिवहइ ।। सू. ९५ ॥ | (चित्रा नं. ६) ते णं काले णं ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे, जे से गिम्हाणं पढमे मासे दुच्चे पक्खे चित्तसुद्धे तस्स णं चित्तसुद्धस्स तेरसी-दिवसेणं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अद्धठ्ठमाणं | राइंदियाणं विइक्कंताणं उच्चठ्ठाण-गएसु गहेसु, पढमे चंदजोगे, सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु, जइएसु सव्व-सउणेसु, पयाहिणा-णुकूलंसि भूमि-सप्पंसि मारुयंसि पवायंसि, निप्फण्ण-मेइणीयंसि कालंसि, पमुइअ-पक्कीलिएसु जणवएसु, पुव्व-रत्ता-वरत्तकाल-समयंसि हत्थुत्तराहि नक्खत्तेणं चंदेणं जोग-मुवागएणं आरुग्गारुग्गं दारयं पयाया 率非瞭鄰密茲率療藥品潮濕踪球球感激率廊 For Private and Personal Use Only

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