Book Title: Kalpasutra
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 26
________________ Shri Maharan Aradhana Kendra www.kabarth.org Acharya Shekalassagarsun Gyanmandir प्रजासूत्र २२॥ सुकुमालुल्लसिअ -मोरपिच्छ-कय-मुद्धयं, अहिअ-सस्सिरीअं, फालिअ-संखंक-कंददगरय-रयय-कलस-पंडुरेण मत्थयत्थेण सीहेण रायमाणेण रायमाणं भित्तुं गगणतलमंडलं चेव ववसिएणं पिच्छइ, सिव-मउअ-मारुअ-लयाहय-कंपमाणं, अइप्पमाणं, जण-पिच्छणिज्ज-रूवं ८ ॥सू. ४०|| (चित्रा नं. ४) तओ पुणो जच्च-कंचणुज्जलंत-रूवं, निम्मल-जल-पुन्न-मुत्तमं, दिप्पमाण-सोहं, कमल-कलाव-परिरायमाणं, पडिपुन्न-सव्व-मंगल-भेअ-समागम, पवर-रयणपरिरायंत-कमलठ्ठिअं, नयण-भूसणकर, पभासमाणं सव्वओ चेव दीवयंतं, सोमलच्छी-निभेलणं, सव्वपाव-परिवज्जिअं, सुभं, भासुरं, सिरिवरं, सव्वोउअ-सुरभि| कुसुम-आसत्त-मल्लदामं पिच्छइ, सा रयय-पुन्नकलसं ९ ।।सू. ४१।। तओ पुण रवि-किरण-तरुण-बोहिअ-सहस्सपत्त-सुरभि-तर-पिंजर-जलं, जलचर-पहकर-परिहत्थग-मच्छ-परिभुज्जमाण-जल-संचयं, महंतं जलंतमिव कमलकुवलय-उप्पल-तामरस-पुंडरीयोरु-सप्पमाण-सिरि-समुदएणं रमणिज्ज - रूवसोभं, |पमुइअंत-भमरगण-मत्त-महुअरि-गणु-क्करो-लिज्ज-माण-कमलं, (ग्रं. २५०) कायंबग 激激嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩嫩聯带激激激 . B For Prate and Personal Use Only

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